हिंदू बनाम मुस्लिम



हिंदू-मुस्लिम: हम थे, हम हैं, और हमेशा भाई-भाई रहेंगे


लेखक: अयान कबीर

आजकल देश में हिंदू-मुस्लिम को एक-दूसरे का दुश्मन बनाकर पेश किया जा रहा है —

कभी भाषा को ले कर तो कभी लाउडस्पीकर को लेकर, कभी मंदिर की घंटी, तो कभी अज़ान को लेकर।

लेकिन मैं आप सबसे एक सच्ची बात कहना चाहता हूँ —
हिंदू और मुस्लिम कभी दुश्मन नहीं थे।
हम भाई थे, भाई हैं... और हमेशा भाई ही रहेंगे।

दुश्मनी अगर किसी की है,
तो वो उन लोगों की है जो खुद को भगवान राम का भक्त या अल्लाह का इबादतगुज़ार कहते हैं,
लेकिन असल में ना राम को जानते हैं, ना इस्लाम को समझते हैं।


शोर धर्म का नहीं, स्वार्थ का है

इन लोगों को अज़ान से दिक्कत है क्योंकि उनकी पार्टी रातभर चलती है,
सुबह नींद में खलल पड़ता है।

घंटी की आवाज़ से इसलिए दिक्कत है क्योंकि गर्लफ्रेंड की आवाज़ मोबाइल में साफ़ नहीं सुनाई देती।

मतलब साफ़ है —
इनका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है।
इनका मकसद सिर्फ धर्म के नाम पर नफरत फैलाना और सत्ता में बने रहना है।


इनके घरों में आवाज़ नहीं जाती, पर नफरत दूर-दूर तक फैलती है

हकीकत ये है कि इन लोगों के घर ऐसे होते हैं जहां
बाहर बम फट जाए तो भी पता नहीं चलता।
तो फिर मंदिर की घंटी या अज़ान की आवाज़ कैसे पहुंचती होगी?

असल में, इन्हें खुद कुछ पता नहीं होता।
कुछ लोग तो पैसे लेकर नारे लगाने चले जाते हैं।
ना उन्हें मुद्दा मालूम, ना मकसद —
बस भीड़ में शामिल हो जाते हैं।


नफरत से क्या होता है? दो खतरनाक नतीजे होते हैं:

🔹 1. भाईचारा टूटने लगता है

हम एक मोहल्ले में रहते हैं।
हम सबकी जाति अलग होती है लेकिन दिल से हम एक-दूसरे को अपना मानते हैं।

हम सगे भाई नहीं होते,
लेकिन कई बार सगे भाई से ज्यादा प्यार करते हैं।

लेकिन जब कोई “धर्म के ठेकेदार” बीच में ज़हर घोलते हैं —
तो वही लोग जिनके साथ हमने जिंदगी बिताई,
उनसे नज़रें मिलाना भी मुश्किल हो जाता है।

🔹 2. ये लोग खुद अपने जाल में फंस जाते हैं

ये लोग जब हमारे बीच दरार डालते हैं,
तो हमें बहुत बुरा लगता है।

लेकिन जब कुछ महीनों बाद
वही पुराने दोस्त, फिर से हंसकर मिलते हैं —
तो रिश्ता और भी गहरा हो जाता है।

हमने साथ खेला है, साथ हंसे हैं,
साथ मिलकर मोहल्ले की सबसे सुंदर लड़की को इंप्रेस करने की कोशिश की है —
और फेल भी हुए हैं, लेकिन साथ थे!

उस वक़्त हमने कभी नहीं पूछा —
“तू किस धर्म का है?”


हमारा रिश्ता खून का नहीं, दिल का है

मेरे प्यारे देशवासियों,
इन लोगों की लाख कोशिशों के बावजूद हम कभी अलग नहीं होंगे।
क्योंकि हमारा रिश्ता खून का नहीं,
दिल से दिल का है।

वो दिल तोड़ने की कोशिश करते हैं,
और हम हर बार माफ़ भी कर देते हैं।

लेकिन अब नहीं।
इस बार हमें सिर्फ एक ही काम करना है —
इन घिनौने सोच को वोट की ताकत से मिटा देना है।
ताकि वो दोबारा कभी इतनी घिनौनी साजिश करने की हिम्मत ना करें।


मंदिर की घंटी हो या मस्जिद की अज़ान — ये आवाज़ें हमें जगाती हैं, तोड़ती नहीं

अज़ान हो या घंटी —
ये आवाज़ें हमें नींद से जगाती हैं, चेतना देती हैं।

जब एग्ज़ाम का वक्त आता है —
तो सुबह की अज़ान आधा जगाती है,
मंदिर की घंटी पूरी तरह जगा देती है।
और हम समय पर उठकर पढ़ाई कर लेते हैं।

इन आवाज़ों में नफरत नहीं, एकता का संदेश होता है।

Medical science भी कहता है कि
जो लोग सूरज निकलने से पहले उठते हैं,
उनका दिन सबसे ज्यादा ऊर्जा से भरा होता है।

तो फिर इन धर्म के ठेकेदारों को तकलीफ किस बात की है?


अंतिम संदेश

मेरे प्यारे भाईयों और बहनों,
इन लोगों की बातों में मत आइए।
अपने काम पर ध्यान दीजिए।

हमें बांटने वाले बहुत मिलेंगे,
लेकिन जोड़ने वाले सिर्फ हम ही हैं।

चलो मिलकर वो भारत बनाएं
जहां हर धर्म, हर जाति,
एक-दूसरे के त्योहार में शामिल हो
ना कि एक-दूसरे के खिलाफ नारे लगाएं।

जय हिंद, जय इंसानियत।

लेखक: अयान कबीर



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