आलस्य से कैसे बचें



सब कुछ आसान है जब आप व्यस्त रहते हैं, लेकिन कुछ भी आसान नहीं होता जब आप आलसी होते हैं।


लेखक: अयान कबीर

दोस्तों,
स्वामी विवेकानंद जी का एक मशहूर विचार है —
"जब तक तुम व्यस्त हो, तब तक हर चीज़ आसान लगती है, लेकिन जैसे ही तुम आलसी बनते हो, सब कुछ मुश्किल लगने लगता है।"

आज हम उसी "आलस" की बात करेंगे, जो हमारी ज़िंदगी का सबसे खतरनाक दुश्मन है।


आलस की हदें

हमने आलस को इतना बड़ा स्थान दे दिया है,
कि शायद अब तो आलस भी हमें देख के शर्मिंदा होता होगा!
सोचता होगा — "सालों, मैं तो खुद भी इतना सुस्त नहीं जितना ये इंसान हो गया है!"

एक बार की बात है...

एक आदमी शराब पीकर सड़क पर गिरा पड़ा था।
थोड़ा-थोड़ा होश में था।
वहाँ बहुत सारे कुत्ते आ गए।
एक-एक करके सबने उसके मुँह पर पेशाब करना शुरू कर दिया।
लेकिन वो आदमी बोलता रहा —
"वाह! मज़ा आ गया... और करो!"

कुत्ते भी हैरान हो गए।
आखिर में जब एक आख़िरी कुत्ते से कहा गया कि तू भी पेशाब कर,
तो वो बोला —
"इतने पेशाब के बाद भी इसको शर्म नहीं आई तो मेरी पेशाब से क्या फर्क पड़ेगा? मैं क्यों अपना टाइम खराब करूं?"

अब सोचिए...
अगर इंसान खुद पर इतना कंट्रोल खो दे,
तो दुनिया क्या करेगी?


हम सबको पता है हम कहाँ गलती कर रहे हैं

हम सबको ये बात पता है —
हम बहुत ज़्यादा सुस्त हो गए हैं,
लेकिन फिर भी कोई एक्शन नहीं लेते।

हम रोज़ सोचते हैं —
"कल से शुरू करूंगा",
"अभी थोड़ा रेस्ट कर लूं",
"अभी मूड नहीं है",
"जैसे चल रहा है, वैसे ही ठीक है..."

लेकिन सच्चाई ये है —
जब तक आप खुद नहीं बदलेंगे,
तब तक आपकी ज़िंदगी नहीं बदलेगी।


शेर वाली कहानी – एक झटका देने वाली सीख

एक आदमी रास्ते में चल रहा था।
उसे पता नहीं था कि आगे एक शेर बैठा है।
वो गया... और शेर ने उसे खा लिया।

लेकिन अगर आपको पता हो कि आगे शेर है,
तो क्या आप वहाँ जाओगे?

कभी नहीं!

तो जब आपको ये पता है
कि आपकी जो लाइफस्टाइल है वो आपको कहीं नहीं ले जा रही,
तो फिर भी आप उसमें क्यों जमे हुए हो?


ज़िंदगी को इतना व्यस्त बना दो कि आलस पास भी ना फटके

आज से एक ही व्रत लेना —
"मैं अपनी ज़िंदगी को इतना बिज़ी बना दूंगा
कि आलसीपन को मुझ तक आने की हिम्मत ही ना हो!"

हर दिन का शेड्यूल बनाओ।
हर काम के पीछे लक्ष्य रखो।
हर सुबह उठते ही खुद से बोलो —
"आज मुझे खुद को हर हालत में बेहतर बनाना है!"


याद रखो – तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन कोई और नहीं, सिर्फ़ 'आलसीपन' है!

दुनिया में कोई भी इंसान आपका स्थायी दुश्मन नहीं होता।
वक़्त के साथ रिश्ते सुधर जाते हैं।

लेकिन अगर एक बार आलसीपन ने आपकी ज़िंदगी में जगह बना ली,
तो वो आपको पूरी तरह बर्बाद करके ही जाएगा।

इसलिए...

अब समय है उठने का।
अपने अंदर के आलस को जड़ से निकाल फेंकने का।
और एक ऐसी ज़िंदगी जीने का जो खुद पर गर्व करने लायक हो।


निष्कर्ष (Conclusion):

 सब कुछ आसान है जब आप व्यस्त हो,
 लेकिन कुछ भी आसान नहीं जब आप सुस्त हो।

इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अगर आपके दिल में थोड़ी सी भी आग लगी हो...
तो उठिए, अभी से एक्शन लीजिए —
क्योंकि अगला पल आपका इंतज़ार नहीं करेगा।

लेखक: अयान कबीर



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